आशा - डॉ अनुराधा शर्मा

 
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आशा की लौ से
हे बेकल मन 
काली रात को रोशन कर ले |
सहला कर सब ज़ख्मों को 
जीने की राह हासिल कर ले |

अब छोड़ दे
उन सब लम्हों को 
जो अब तक धुंधले-धुंधले  हैं |
छू ले आशा की वह मूक किरण 
जो दबी निराशा के धुएँ में |

चाहत के सिकुड़े 
पाँखों को फैला कर 
तुम खो जाओ असीम गगन |
जुगनू सी रोशनी अपनाकर 
जीवन से अंधेरा दूर करो |

हे मेरे बेकल मन
रोशनी का झीना मंज़र 
तभी दिखाई देगा तुझको 
गर, आशा की लौ से 
ग़म की रात रोशन कर लें |
- डॉ • अनुराधा शर्मा
हिंदी अध्यापिका
माध्यमिक शिक्षा विद्यालय
नौशहरा नाल बंदा, पठानकोट, पंजाब 
Kaushal.anu9@gmail.com
 

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