बचपन - अनिरुद्ध कुमार 

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याद आ रहा प्यारा बचपन,

सुंदर सच्चा था जीवन धन।

मौजों के सुरताल थिरकता,

निर्भयता से आँगन, उपवन।

कजरारे आँखों का क्रन्दन,

बात बात में उमड़े सावन।

स्नेहिल माता करे चिरौरी,

छोह मोह का वह हठबंदन।

मधुर प्रेम का वह आलिंगन,

बचपन का जीवन वह चंदन।

राज रतन बन निकलें घर से,

भाव सरल होता अभिनंदन।

तोता मैना का संबोधन,

रूठें ना सबका वह चिंतन।

मस्ती में दिन रात गुजरात,

भूलें कैसे प्यारा बचपन।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड
 

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