आ जाओ फोन करते-करते - सुनीता मिश्रा
Mon, 2 May 2022

जब फासलें हो दरमियां
किसी मजबूूरी मे...
तो दिल से निकलते हैं...
ये उदगार....
फोन करो कुछ बात करो...
बाते करते हुये फोन पर...
कुछ देर तो साथ चलो...
कुछ सांसे सुनने दो अपनी...
कुछ सुनो मेरी सांसों को...
एक फोन जरूरी है तेरा...
चलने को धडकनों को मेरी...
एक लय जरूरी है ...
तेरी सांसों की...
जिन्दगी चलाने को मेरी...
जरूरी है आवाज़ तेरी...
एहसास पाने को तेरा...
नित ही जरूरी है इक फोन ...
सुनने को तेरी आवाज...
माना फासलें हैं ...
दरमियां तेरे-मेरे...
पर अब आ जाओ तुम साथ....
फोन पर करते हुये बात।
...✍️सुनीता मिश्रा, जमशेदपुर