दोहा (पिता) - अनिरुद्ध कुमार
Wed, 22 Jun 2022

वट वृक्ष समतुल्य पिता, पावन प्यार दुलार।
जीवन पाता आसरा, सुखदायक व्यवहार।१।
पालपोस मानव बना, तन मन उच्च विचार।
ज्ञान ज्योति से मन हरा, पापा का संस्कार।२।
बचपन, यौवन पार कर, आज खड़े मझधार।
तृप्त लगे यह जिंदगी, पापा का उपहार।३।
कैसे भूलें बोलना, बापू का उपकार।
आती घर की याद जब, बैठे मिलते द्वार।४।
चरण रज ले माथ पे, करते सदा बखान।
जब तक तन में प्राण है, पापा का गुनगान।५।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड