बाजार में शिक्षा - आलोक रंजन
Sun, 24 Jul 2022

एक औरत दूसरी औरत से बोलती है कि
दसवीं, बाहरवीं के तो सही,
इन्होंने नौवीं के भी
बढ़ा दी है इतनी फीस,
अब कैसे जियेगा आदमी,
बच्चों को पाले या खुद को।
लोग कहते हैं शिक्षा बेची नहीं जाती,
लेकिन वास्तव में आज शिक्षा ही बेची जा रही,
नर्सरी से लेकर पीएचडी तक,
शिक्षा चिल्लाती है और बोलती है अपना दाम,
चौराहों पर इमारतों पर सड़कों पर दौड़ती गाड़ियों में।
एक मध्यमवर्गीय परिवार कि कमाई बस,
इतनी है कि जी सके और पढ़ा सकें बच्चों को,
एक सामान्य शिक्षण संस्थान में,
नहीं बना सकता जेवर जमीन आदि,
क्योंकि वह कोशिश में हैं आदमी बनाने को।
-आलोक रंजन, कैमूर, बिहार