गीत - जसवीर सिंह हलधर

धरा आकाश जैसी प्रीत हूँ मैं , जहां का दर्द मेरे साथ में है ।
अहं पर ब्रह्म जैसी जीत हूँ मैं , उसी का लेख मेरे माथ में है ।।
फिसलती रेशमी शब्दावली का , नहीं पहने हुए मैं आवरण हूँ ।
मुझे आता न भाषा का सलीका , पता हूँ गाँव का शहरी वरण हूँ ।
न पिछड़ी रूढ़ियों की रीत हूँ मैं , समूचा देश मेरे हाथ में है ।।
धरा आकाश जैसी प्रीत हूँ मैं , जहां का दर्द मेरे साथ में है ।।1
सकल ब्रह्मांड का मैं नागरिक हूँ , न केवल गाँव का ना ही शहर का ।
मरुस्थल का सगा हूँ जागरुख हूँ , सगा हूँ सिंधु का ऊंचे शिखर का ।
न दिल्ली राज पथ का गीत हूँ मैं , बसी ये जान तो फुट पाथ में है ।।
धरा आकाश जैसी प्रीत हूँ मैं , जहां का दर्द मेरे साथ में है ।।2
सतत गतिमान पिंडाकार हूँ मैं , गतागत लोभ लालच में सना हूँ ।
जमीं पर शून्य का विस्तार हूँ मैं ,चरा चर पंच तत्वों से बना हूँ ।
उसी का दास उसका मीत हूँ मैं , सनातन सत्य जग के नाथ में है ।।
धरा आकाश जैसी प्रीत हूँ मैं , जहां का दर्द मेरे साथ में है ।।3
सदा जोखिम भरा जीवन जिया हूँ , किये है भोग पीड़ित कर्म सारे ।
कभी पीछे न देखा विष पिया हूँ , चला हूँ योग साधन के सहारे ।
नया "हलधर "रचाया गीत हूँ मैं , सदी का दर्द मेरी प्राथ में है ।।
धरा आकाश जैसी प्रीत हूँ मैं , जहां का दर्द मेरे साथ में है ।।4
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून