गीतिका सृजन (आधार छंद- लावणी) - मधु शुक्ला
Nov 7, 2022, 22:47 IST

ज्ञान दीप की आभा धूमिल, अहंकार तम करता है ,
शनैः शनैः घमंड शुचि मन में, द्वेष घृणा को भरता है।
अपनों से अपनत्व न मिलता, अहं भाव के कारण ही,
प्रगट मुखौटे हों रिश्तों में , कोई कष्ट न हरता है।
मित्र, पड़ोसी निकट न आते, एकाकी जीवन बीते,
जीवन साथी भी दम्भी से, सच कहने में डरता है।
अहंकार का दीमक मनु को, करे खोखला अंदर से,
सम्मुख सबके हँसता मानव, मन ही मन में मरता है।
जीवन दर्पण उज्ज्वल रहता, जब तक मानव नम्र रहे,
चैन और सम्मान मिले जब , मन धीरज को धरता है।
- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश