गीतिका - मधु शुक्ला
Fri, 22 Jul 2022

तुम जो मिले हँसने लगा घर द्वार है,
लगने लगा खुशहाल अब परिवार है।
जब से हुआ है प्यार हमको आपसे,
भाने लगा बेहद हमें संसार है।
जीवन हमारा आपने रोशन किया,
अब जिंदगी मेरी तुम्हारा प्यार है।
शायर बना पाकर सहारा आपका,
लेखन हमारा आपसे गुलजार है।
देते तुम्हीं 'मधु' प्रेरणा सद्कर्म की,
बिन आपके यह जिंदगी बेकार है।
— मधु शुक्ला,.सतना , मध्यप्रदेश