गजल - ऋतु गुलाटी 

 
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ये दुनिया भी सताती है भले हमको हकीकत मे।
बचे कैसे? जमाने से फँसे हम तो अजीयत मे।

चलो ढूँढे जहां में हम,तजुर्बा मिल ही जायेगा।
गरीबी हो निहायत गर, फँसेगे हम जलालत में।

न खोना हौसला तुम भी,मिले जो मुश्किलें तुमको।
अजी जीना हमे होगा, जिंदगी को जहानत में।.

करो वादा सजन अब दूर तुम हमसे न जाओगे।
सदा रहना हमेशा तुम, खुदा की रह इबादत मे।

जमाना कुछ कहे तुम को,हमे रहना सदा साथी।
अजी जीना तुम्हारे संग रहना आज उल्फत में।

कमा लो नेकियाँ जग में,खुदा के पास जाना है।
तुम्हारी पेशगी होगी, खुदा की जब अदालत में।

बहारो छेड़ दो सरगम, हमें गाना तराना है।
सुनेगे आज बालम संग मेरे गान कुर्बत में।
 - ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली चण्डीगढ़ 
 

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