ग़ज़ल - विनोद निराश
Mon, 1 Aug 2022

सुर्ख मेहंदी जब रचाई होगी,
याद मेरी भी तब आई होगी।
करके याद मुझको सावन में,
रुखसार पे सुर्खी छाई होगी।
चुडी, कंगन, कजरा, गज़रा,
अबरू भी खूब सजाई होगी।
छाये होंगे जब स्याह बादल,
उलझी जुल्फे सुलझाई होगी।
उठी होगी जब बिरह वेदना,
जाने कैसे वो बुझाई होगी।
दे दे कर आवाज पपीहे ने,
प्रेम अगन सुलगाई होगी।
कूके कोयल नाचे मयूर जो,
इक टीस उभर आई होगी।
छेड़ती होंगी सखियाँ तुझको,
बाते कुछ कुछ बनाई होगी।
कड़की होगी जब बिजलियाँ,
आँखें तेरी भर आई होगी।
ख्याले-निराश जो आया होगा,
दुपट्टा सर रख शरमाई होगी।
- विनोद निराश , देहरादून