गजल - झरना माथुर
Aug 27, 2022, 23:08 IST

कहां जाये बता ये दिल जमाने ने सताया है,
मिली ठोकर मुझे उसकी गले जिसने लगाया है।
सितम हर वो सहे हमने लिखे थे जो लकीरों में,
नये गम ने नये रंग से मुझे फिर से मिलाया है।
उजालों को गिला मुझसे अंधेरों में ठिकाना है,
खता तू भी बता दिलवर मुझे फिर क्यूँ रुलाया है।
मिलावट ही मिलावट है बशर की इस नियत में जो,
दिखाबट मे मुहब्बत का कफन उसने तुरपाया है।
वतन में अब सियासत है मज़हबी काश्तकारों की,
मगर उल्फ़त भी हो देश की तिरंगा ये फहराया है।
मगर अब भी गमे-दिल है कहीं "झरना" सदर से जो,
जिरायत पे हिमाकत का गलत फरमान चलाया है।
- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखण्ड