गजल - झरना माथुर 

 
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हमारी सल्तनत में सिर्फ उनकी ही मुहब्बत हो,  
मिले वो सुकून इस जिंदगी का उसकी जरुरत हो।

रिहाई हो न उनकी बस दुआ है ऐ खुदा मेरी,
रहे उनकी बाहों में कैद मेरी और चाहत हो।

लिखे थे जो कभी एहसास गुलाबी खत में जो तुमको,
जवाब के उन खतों पे तेरी ही बस  लिखावट हो।

कभी पतझड़, कभी सावन, फसाना है, फिजाओं का ,
मगर गम तुम न करना बस तेरे दिल में उल्फत हो।

क्या किस को पता है कब कहां क्या हो फिक्र मत कर,
यकीन रखना करामात पे खुदा की कोई नेमत हो। 

तुम्हें "झरना" मिले तो उस के हाल पे न तुम रोना, 
हुनर है जीने का उसमें तभी कुदरत की अजमत है।
- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड 
 

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