गज़ल - झरना माथुर
Sep 22, 2022, 23:05 IST

गुजारी थी हसीं शामे उन्हीं का अब हिसाब नही,
सुकून था जो मिरे दिल को कहा गुम है जवाब नही।
कभी तुम ने वफ़ा की थी मिरे सर पे कसम खा के,
मगर अब बे-बफाई का जवाब कुछ लाजवाब नही।
लिखे थे खत कभी मैने शबो में आसूँ बहा कर के,
सनम अब वो तिरे पास उन खतो की क्यूँ किताब नही।
कभी हम ने करी थी कुछ मुहब्बत से भरी बातें,
तिरे क्या उस गुलिस्ता में कोई सूखा गुलाब नही।
कही छत पर कभी तुमने लिखा था जो मिरा वो नाम,
रहे आबाद "झरना" उस स्याही का जवाब नही।
- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड