हिंदी ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर
Wed, 27 Apr 2022

मछेरे वही हैं वही जाल भाई !
वही मछलियाँ हैं वही ताल भाई !
गधे खा रहे माल मीठा मलाई ,
नहीं अश्व के पैर में नाल भाई !
लगी होड सी है खिंचाने की फोटो ,
जलें भूख की आग से चाल भाई !
अमीरी गरीबी पे भारी पड़ी है ,
न रोटी न चावल नहीं दाल भाई !
कभी लॉकडाउन बना था तमासा,
करोना बना था तभी काल भाई !
दवा की दुकानें सभी खुल रहीं थी ,
शराबी दिखें थे बुरे हाल भाई !
सड़ी खेत में अन्न सब्जी हमारी ,
धरा पूत रोये नहीं ढाल भाई !
बटी कौम भोली कमीनी सियासत ,
बजाती जमातें फिरें गाल भाई !
यहाँ भूख से कौन हारा नहीं है ,
इसी ने झुकाया सदा भाल भाई ।
दिखा झोंपड़ी में गरीबी नजारा ,
पड़ा कोठियों में बहुत माल भाई ।
कहीं पेड़ की कोई कीमत न "हलधर",
कहीं बिक रही तोल में छाल भाई ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून