याद आता है - अनिरुद्ध कुमार 

 
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हसीं बचपन लुभाये मन सुहाना याद आता है.
दुलारों की झड़ी हरपल बुलाना याद आता है। 

खुशी  हरदम रहें बेदम लुभानी रसभरी बातें,
कभी तोता कभी  मैना  तराना याद आता है। 

सजा गेसू लगा काजल मटकते चालमें मस्ती,
चलें  बनठन गुजारे दिन पुराना याद आता है। 

मिले दोचार जब साथी गजब होती कलाबाजी,
बने कफ्तान क्या रुतबा  जमाना याद आता है। 

सुबह से शाम हो जाती गजब इक बेकरारी सी,
लगे सारा चमन मधुबन  खजाना याद आता है। 

बड़ी नटखट पुकारे माँ  कहें दादी सुनो राजा,
पिता का प्रेम आलिंगन हँसाना याद आता है। 

जहां  रूठें  मनायें सब  सभी बेचैन होजाते,
नयन में प्रेम की धारा  लुभाना याद आता है। 

दुलारे सब  करें वादा  मिले सौगात प्यारी सी,
कभी सोना कभी राजा, मनाना याद आता है। 

खयालों की सभी बांते रखे 'अनि' को तरोताजा,
यही  अवलंब  जीनेका, बहाना  याद  आता है। 
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड
 

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