संस्कारों का गहना - मणि बेन द्विवेदी
Tue, 12 Jul 2022

अगर करोगे खुद ही निज संस्कार का तिरस्कार।
तो होगा समाज में अनेकों कुरीतियों का प्रसार।
भरोसा रखना मात तात पर करना तुम विश्वास।
चलोगे गर मर्यादित पथ पर जीवन होगा ख़ास।
जैसे चंदा सूरज तारे कभी ना निज पथ बदलें ।
वैसे ही तुम भी ना त्यागो ऋषियों के संस्कार।।
कुसंगों का साथ न कर उद्देश्य से नहीं भटकना।
संस्कारों की ज्योति जला के पथ आलोकित करना
पूर्वज के संस्कार ही होंगे अमूल्य निधि जीवन के।
कुसंगत हर लेती बुद्धि क्लेश भरे तन मन में।
माना आज कि खुले हुए हैं समृद्धि के लाखों द्वार।
खूब हुआ है ज्ञान बुद्धि का खूब हुआ प्रचार प्रसार।
लेकिन तुम विचलित ना होना भ्रम में कभी ना रहना
चरित्र तेरा अनमोल धरोहर संस्कार है तेरा गहना।।
मणि बेन द्विवेदी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश