कविता (दीप जले) -- अनूप सैनी 

 
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दीप जले..
मिटे अंधेरा 
इस जग का
रोशन हो मन मंदिर
दीप जले...

खिले फूल
जीवन की बगिया में 
लाने को खुशी मुख पर
बनमाली के..
दीप जले...

धरती उगले सोना
करे धान का वो बिछौना
हर्षा ने हलधर का मन 
दीप जले..

भरे पेट उनका
हैं जो भूखे ही सोते
जलाने को किसी गरीब का चूल्हा
दीप जले...

भूलें सारे शिकवे
बैठें हम सब मिलकर
मिटाने को कालुष मन की
दीप जले...

जलता रहे ये दीपक
लौ रहे ये दमकती
लाने को खुशहाली जीवन में
दीप जले...
- अनूप सैनी 'बेबाक़'
 बाडेट, जिला- झुंझुनूं, राज. सरकार।
मो 9680989560

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