मकरसंक्रांति - भूपेन्द्र राघव
Mon, 23 Jan 2023

सूर्य रश्मियाँ उतर रहीं हैं
सतरंगी परिधानों में ।
भीनी खुशबू महक उठी है
खेतों में, खलिहानों में ॥
ओंसकणों से शलभ तितलियां
हाथ पैर मुँह धो आये ।
नीड छोड़ कर निकल चुके हैं
पंछी भी आसमानों में ॥
नदियों की सुरमय कलकल ने
धरती को गीत सुनाया है ।
कलियों की अंगड़ाई से वो
अलिदल भी खिंच आया है ॥
देवालयों में गुंजित स्वर से
ईष्टदेव का वंदन है ।
मित्र आपका उत्तरायण में
शुभप्रभात अभिनन्दन है ॥
- भूपेन्द्र राघव, खुर्जा , उत्तर प्रदेश