कविता - जसवीर सिंह हलधर

 
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जो कुछ सीखा है जीवन में ,वो ही अधरों पर आयेगा ।
जो गिरी की चट्टानों में है ,वो ही शिखरों पर पायेगा ।।
पग पग पर जो घाव दिये हैं ,पथरीले पथ के शूलों ने ।
रूप बदलकर हास्य व्यंग भी ,करुणा के ही सुर गायेगा।।1

अंधे युवराजों के घर में , नर्तन करती अब उजियाली ।
फूलों की इस चकाचोंध में ,सिसक रहा बगिया का माली ।।
फिल्मों की भी राहें भटकी , कला नग्नता ने है सटकी ।
असली रंग कला कर्मी को, फिल्मी नंगपना खायेगा ।।2

आँखों से आँसू क्या निकले , उनको तो मकरंद मिल गया ।
छालों को रोते देखा तो ,उनके मन आनंद खिल गया ।।
खाकर जहर भुने तीरों को ,घाव हुऐ ऐसे कुछ दिल में ।
घायल मन की इस वीणा में , प्रीत प्रभाव कौन लायेगा ।।3

सूरज सम्मुख छाती ताने, जुगनू सारे चमक रहे हैं ।
चाँद छुपाये मुँह बैठा है , नकली तारे दमक रहे हैं ।।
सच ने तम की चादर ओढ़ी , गले झूँठ के पड़ा दुशाला ।
शब्द लेखिनी से जो निकला, केसरिया उस पर छायेगा ।।4

जालिम चोर लुटेरे जग में , देखो अब भगवान हो गये ।
मंदिर मस्जिद के रखवाले , दंगे का सामान हो गये ।।
संसद का गलियारा भी तो , सब्जी मंडी सा लगता है ।
"हलधर" की कविता रोती  है , मंचों पर जोकर छाएगा ।।5
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून
 

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