प्रवीण प्रभाती - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
Sat, 14 May 2022

रिश्ते - नाते टूटते, विघटित आज समाज।
संबंधों को तोड़ कर, हमें न आती लाज।
हमें न आती लाज, न शिष्टाचार बचें हैं।
दो-दो का संसार, मनुज ने स्वतः रचें हैं।
आग्रह करते ' शान ', जोड़ कर पुनः बुलाते।
फिर से डालें जान, सँवारें रिश्ते-नाते।।
भँवरे गुंजन कर रहे, आया है मधुमास।
उपवन की शोभा बनें, टेसू और पलाश।
टेसू और पलाश, संग में चंपा बेला।
गेंदा और गुलाब, सजा रंगों का मेला।
फुलवारी अरु बाग, बसंती रँग में सँवरे।
पी कर नव मकरंद, गुँजाते बगिया भँवरे।।1
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा/उन्नाव, उत्तर प्रदेश