एक फिर से होली - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

 
pic

आ गयी है आज होली ले नये उल्लास को।
और मन आतुर हुआ है हास सँग परिहास को।1

रंग बासंती दिखता हर दिशा में ताजगी,
खुशनुमा मौसम जगाये फिर नये विश्वास को।2

दूर सरदी जा चुकी आहट मिले ऋतुराज की,
भांग ठंडाई बुझाती हर किसी की प्यास को।3

दिख रहीं चारों तरफ अनुपम सुनहरी बालियां,
हो प्रफुल्लित कृषक जन पालें नवेली आस को।4

घर भरेंगे नव फसल से हो गरीबी दूर जब,
मुक्ति मिल पाये तभी जकड़े हुए हर दास को।5

कूकतीं कोयल छिपीं बैठीं किसी अमराई' में।
जो बिखेरें मधुर स्वर करने दुखों के नास को।6

उड़ रहे चारों तरफ बादल अबीर-गुलाल के।
रंग का उन्माद भरता चित्त में आज उजास को।7

लोग गाते फाग मिलकर ढोलकों की थाप पर।
मन मँजीरे बज उठें जो दूर कर दें त्रास को।8

खोजते नैना जिसे वह मीत छिप बैठा कहीं।
आज दिल करता पिया सँग रास और विलास को।9

जो झलक मिल जाय उनकी जी मचल जाये तभी।
पूर्णिमा की रात आयी मन मचलता रास को।10

दे रहा संदेश फागुन सब सुनो दम साध कर।
प्रेम में रँग कर बढ़ें रचने नए इतिहास को।11
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश
 

Share this story