अब बुलाले जिंदगी - अनिरुद्ध कुमार
Jul 25, 2024, 22:22 IST
बोल कितना दर्द झेलें जिंदगी,
छोड़ पीछा जान लेले जिंदगी।
बेसहारा जी रहें हो गमजदा,
क्यों बताना खेल खेलें जिंदगी।
साथ में कोई नहीं जो थामले,
रातदिन तड़पें अकेले जिंदगी।
खेल कैसा खेलता यह आदमी,
हर तरफ लाखों झमेले जिंदगी।
आह से उठता धुआं हूँ बेकदर,
उठ रहें दिल में फफोले जिंदगी।
क्या कहें किससे कहें बेहाल हो,
हर अदा को रोज तोलें जिंदगी।
'अनि' हमेशा प्यार को सजदा करें,
पास अपने अब बुलाले जिंदगी।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड