हादसे - मधु शुक्ला

 
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क्यों  होते  हैं  हादसे, करें अगर  हम खोज।
नये - नये  कारण  हमें , मिल जायेंगे  रोज।।

युवा  नहीं  स्वीकारते, नियमों  का औचित्य।
दुर्घटनाएं   इस  लिए, होतीं  रहतीं  नित्य।।

अंधी  श्रद्धा  भक्ति   भी, लेती  रहती  जान।
ढ़ोंगी  लोगों  की  नहीं, जन  रखते  पहचान।।

जीवन में जब व्यक्ति के, होते अधिक अभाव।
लघु पथ से उसका अधिक, बढ़ जाता है चाव।।

श्रम बिन सुख सुविधा मिले, होता जहाँ विचार।
वहीं  हादसों  के  लिए, खुल  जाते हैं  द्वार।।

सड़क,  सेतु   ऊँचे   भवन,  सहते  भ्रष्टाचार।
और   जन्मते   हादसे,  बनते  लोग  शिकार।।

न्याय  व्यवस्था  और  हम, जब बदलें किरदार।
दूर   रहेंगे   हादसे   होगा    चैन   अपार।।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
 

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