व्यर्थ हैं उपमान सारे - अनुराधा पाण्डेय

 
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नेह की पगडँडियों पर, 
देख यौवन आभ् तेरी,
तर्क सारे व्यर्थ लगते
व्यर्थ हैं उपमान सारे....

है अकथ माधुर्य तेरा,
चिर परे जो व्यंजना से ।
शब्द तुझको छू सके यह,
है असंभव चेतना से ।
गीत तुझ पर क्या लिखे कवि ,
हैं मृषा उन्वान सारे ।
व्यर्थ हैं उपमान सारे ।

मान क्या तेरा बढ़ेगा ,
इस पृथुल जग के कथन से ?
मान का खुद मान बढ़ता ,
मात्र तेरे अनुकरण से ।
पंथ तेरे आगमन के ,
देखते सम्मान सारे ।
व्यर्थ हैं उपमान सारे ।

मंत्र तेरे दो नयन के ,
साध सकता कौन जड़मति। 
तू तरल अव्यक्त विभु है ,
बाँध सकता कौन जड़मति ।
सत्य! घुटने टेक देंगे,
वेद के भी ज्ञान सारे। 
व्यर्थ हैं उपमान सारे ।
- अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका , दिल्ली  
 

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