मन की पीड़ा - सुनील गुप्ता

 
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कह
ना पाएं 
जब मन की पीड़ा हम  !
तब रहें घुटते मन ही मन ...,
और छिपा ना पाएं चेहरे से गम !!1!!
रह
ना पाएं
कष्ट दुःखों को झेलते हरदम  !
और बता ना पाएं मन की पीड़ा.....,
सतत चलें छिपाए *रंज-ओ-अलम !!2!!
बहते
अश्क बतलादें
सभी को हमारे मन की तकलीफें  !
भले ही करें लाख कोशिशें हम.....,
पर,कभी छिपा नहीं सकते मन व्यथाएं !!3!!
सहते
जीवन व्यथाएं
हरेक पल बनें रहते हैं दुःखी हम  !
यदि चलें इसे अपनों को बतलाए....,
तो, कुछ कम हो सकते हैं हमारे गम !!4!!
रमते
चलें हर्षाएं
और ग़म ग़लत करते जीएं  !
कभी ना रहें बनें जीवन में दुःखी.....,
चलें *रंज-ओ-मलाल से ध्यान भटकाए !!5!!
 *रंज-ओ-मलाल= दुःख, रंज, वैमनस्य
 *रंज-ओ-अलम= नाराजगी या शोकग्रस्त होना
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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