भवसागर को पार भइल - अनिरुद्ध कुमार 

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जीवन कतना मनमोहन बा,
हँसके, रोके झंकार भइल।
उलझन हीं जीवन के धारा,
जे उलझल दरिया पार भइल।

अन्तर्मन में नव प्रेम गीत,
जीवन पथ में इजहार भइल।
हर लटका झटका मनमोहक,
मन प्रीत अमर इजहार भइल।

कतना सुंदर जीवन बावे, 
जे जानल बस ललकार भइल। 
मन मन्दिर लहरे प्रेम गीत,
जीवन जीवन आधार भइल।

बा अतुल प्रेम  में आकर्षण,
जीवन सगरे गुलजार भइल।
ई प्रेम सदा मन मुस्काये,
रसमय पावन संसार भइल। 

जब लहर उठल मन इतराइल,
जे जानल जीवन धार भइल।
साधक बन के लहरी लहरल,
उत भवसागर के पार भइल।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड
 

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