आखरी बारात थी - अनिरुद्ध कुमार
Apr 12, 2023, 21:50 IST
दर्द से लबरेज कैसी रात थी,
साथ छूटा जिंदगी की बात थी।
रोकना चाहा मगर लाचार था,
हाय अंतिम कैसी मुलाकात थी।
तोड़ बंधन छोड़ साथी चल पड़ी,
आदमी को मौत की सौगात थी।
लुट गयें आके किनारे हमसफ़र,
जख्म गहरें बेबसी की घात थी।
कौन जानें आदमी गमगीन क्यों,
सोंचतें वो कौन सी आघात थी।
बंद आँखों में समेटे प्यार को,
रो रहा दिल बेखुदी हालात थी।
दरबदर 'अनि' बेसहारा राह में,
प्यार की वो आखरी बारात थी।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड