जग ललचाये  - अनिरुद्ध कुमार

 
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शशि विहसे मनको अति भाये,
मन झूमें जड़ चेतन गाये।
चकमक चकमक जुगनू धाये,
जगमग आभा लुकछिप जाये। 

चाँद रूप नित धरा निहारें,
शीतलता पर तनमन वारे।
मनमोहक मनप्रीत नजारे,
बेसुध हो जीवन किलकारे।

रजनीपति का रूप निराला,
शिशिर लुटाये हिम का प्याला।
भटक रहा होकर मतवाला,
मोहित होता हर दिलवाला।

प्रेम पथी मानव इतराये,
नवजीवन नव राह सुहाये।
तन झूमें मनवा हर्षाये,
चंद्रमा देख जग ललचाये।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड
 

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