अब बाबा प्रमोद कृष्णम् भी भाजपा की शरण में - राकेश अचल

 
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utkarshexpress.com - बाबा किसी भी तरह के हों उनके आत्मज्ञान का कोई सानी  नहीं है। खुदा न खास्ता यदि  बाबाओं को राजनीति का चस्का लग जाए तो वे भगवान से ज्यादा नेताओं की स्तुति करने लगते हैं ।नेताओं की स्तुति-गान की ये परम्परा  बहुत  पुरानी  है ।कांग्रेस  के जमाने  से शुरू  हुई  ये परम्परा  अब चरम  पर  पहुँच चुकी है ।अब हिन्दू विचारधारा के भाजपा समर्थक बाबा ही नहीं बल्कि धर्मनिरपेक्षता और कांग्रेस समर्थक बाबा भी नेताओं की स्तुति में पीछे नहीं हैं ।इस परम्परा में नया नाम कांग्रेस समर्थक बाबा प्रमोद कृष्णम  का जुड़ा है।
प्रमोद कृष्णम भी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र  मोदी   की शरण में पहुंच चुके हैं। प्रमोद जी की ये धारणा एक दिन में नहीं बनीं ।इसे बनने में पूरा एक दशक लगा ,लेकिन प्रकट होने में एक पल भी नहीं लगा। बाबा जी अपने 'कल्किधाम' के शिलान्यास का निमंत्रण पत्र लेकर प्रधानमंत्री जी के पास गए थे ।उनसे मिलने के बाद बाबा जी के स्वर एकदम बदल गए ।ये बाबा जी  भी उसी बिहार से आते  हैं जिस बिहार से पल्टूराम के नाम से चर्चित हुए नीतीशकुमार आते हैं ।नीतीश कुमार के राज्य के होने का अर्थ ये नहीं है कि हर बिहारी पल्टूराम होता है।बिहार में जयप्रकाशनारायण भी होते हैं ।वैसे बाबाजी की उत्पति को लेकर विवाद है ।कोई-कोई उन्हें उत्तरप्रदेश का उत्तरदाई बाबा भी मानता है ।
बहरहाल बाबा प्रमोद कृष्णम को मोदी जी के प्रति भक्तिभाव दर्शाने के फौरन बाद कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया है।प्रमोद कृष्णम एक लम्बे अरसे से सार्वजनिक रूप से कांग्रेस की लीक  से हटकर बातें कर रहे थे। वे कांग्रेस में रहते हुए कांग्रेस के ' सुपर आलोचक ' भी बन गए थे।उन्हें कांग्रेस नेतृत्व  पर हमले करने में रस आने लगा था और जब वे पहली मर्तबा  मोदी जी से मिले तो उनका हृदय परिवर्तन ही हो गया और उन्होंने भी मोदी जी का दामन थाम लिया।
बाबाओं की जरूरत हर राजनीतिक दल को होती है।कांग्रेस को भी थी। कांग्रेस ने प्रमोद कृष्णम को 2014  और 2019  में लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव भी लड़ाया लेकिन सांसद बनना उनके नसीब में नहीं था ।प्रमोद जी भगवावस्त्रधारी बाबा नहीं है। वे धवल वस्त्र पहनते हैं और कल तक धर्मनिरपेक्षता की बात करते थे साथ ही कल्कि आश्रम भी चलाते हैं ।
गठबंधन सरकारें तोड़ने,गिराने में सिद्धहस्त भाजपा ने साल के शुरू में ही लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के एक बाबा को भी तोड़  लिया।अब बाबाओं के मामले में कांग्रेस भाजपा के मुकाबले बहुत कंगाल है ।आप कह सकते हैं कि कांग्रेस के नेताओं को भाजपा सरकार ने पिछले एक दशक में खुद बाबा बना दिया है ।बेचारे वे खुद राम-राम जपते फिर रहे हैं ।प्रमोद कृष्णम के कांग्रेस से बाहर फेंके जाने के बाद नुक्सान होगा या फायदा ,इस बात पर बहस करने का कोई अर्थ नहीं है ,क्योंकि बाबा प्रमोद कृष्णम कांग्रेस के लिए एक खोटे सिक्के पहले ही साबित हो चुके हैं।कांग्रेस ने उन्हें दो बार मौक़ा दिया लेकिन वे एक बार भी लोकसभा का चुनाव नहीं जीत पाए यानि उनका कोई जनाधार नहीं है ।
   बाबा प्रमोद कृष्णम से मैं शुरू से बहुत प्रभावित रहा हूँ लेकिन अचानक उनके सुर बदलने से मेरी भी धारणा बदल गयी है। मुझे लगता था कि बाबाओं के सुर अचानक नहीं बदलते,लेकिन अब मुझे लगता है कि  कदाचित  मैं ही गलत था ,गलत हूँ,क्योंकि बाबाओं के सुर तो कभी भी बदल जाते हैं ।धर्मध्वजाएं उठाने वाले तमाम बाबा आज भी भाजपा के साथ हैं ,क्योंकि भाजपा अकेली पार्टी है जो धर्म की राजनीति खुल्लम-खुल्ला करती है। भाजपा ने राम मंदिर के निर्माण को भी धड़ल्ले से अपनी एक दशक की उपलब्धियों में शुमार कर लिया है ।इस दुस्साहस के लिए मैं भाजपा का भी प्रशंसक हूँ ।हर पार्टी में इतना दुस्साहस होना चाहिए ।
इस तिमाही में होने वाले लोकसभा चुनाव में ' मिशन -400  ' हासिल करने के लिए भाजपा का भर्ती  अभियान बहुत पहले से शुरू हो चुका है।   उसे किसी  से गुरेज नहीं है ।कांग्रेसी से भी नहीं,क्योंकि कांग्रेसी वल्दियत बदलने के मामले में बड़े उदार माने जाते हैं।
आचार्य प्रमोद कृष्णम  के कांग्रेस छोड़ने और निकट भविष्य में भाजपा में शामिल होने या भाजपा को कल्कि आश्रम के बाहर खड़े होकर समर्थन देने से भारतीय राजनीति  की दशा और दिशा बदलने वाली नहीं है ।देश के चार शंकराचार्यों के मोदी विरोधी होने के बाद भी देश की दशा और दिशा नहीं बदली न कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से ही बदली ।इसे बदलने के लिए कोई अकेले सक्षम नहीं है।ये महान कार्य केवल और केवल देश की जनता कर सकती है। आने वाले दिनों में मोदी नाम की चुंबक कांग्रेस और दूसरे दलों के कितने बाबाओं को अपनी ओर आकर्षित करेगी,कहना कठिन है। लेकिन मैं आचार्य प्रमोद कृष्णम को कांग्रेस से बाहर जाने  के लिए शुभकामनायें देता हूँ।(विनायक फीचर्स)

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