बसंत बहार - सुनील गुप्ता

 
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आयी बसंत बहार, सज आई वसुंधरा
चहुँओर बरस रहा , अब आनंद बहार   !
चलें झूमें गाए तन मन ये जीवन धरा.....,
और बहे चले ठंडी, मधुर मकरंदित बयार !!1!!

खेत खलियान चहक रही पीली सरसों 
वन पंछी विहंग कोयल कूक हर्षा रहीं  !
अब आम मंजरी जाए महके बागों में....,
बसंत स्वागत में खिली कलियाँ मुस्कुरा रहीं !!2!!

अल भोर की बेला, लगे मन को है भाने
दिवस धूप चले हौले-हौले अब गुनगुनाए   !
दसों दिशाओं से उठ रही हैं मधुर स्वर तानें..,
चली धानी चुनरिया पहने धरा खिले सरसाए !!3!!

है मदनोत्सव प्राकट्य दिवस श्रीवाग्देवी का
चलें बच्चों को अमृतज्ञान संस्कार देते नित्य !
करें विधि विद्यान संग पूजा माँ सरस्वती की.....,
आई है बसंत जीवन को बनाने दिव्य भव्य !!4!!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान
 

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