बसन्त - डॉ.जसप्रीत कौर

 
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जीवन्त  हो गया भावनाओं का मधुमास,
साँसों   में   भर  गया   मधुरिम  उल्लास। 
 
मेरे  भीतर   संवेदना   का   रंग   घोल   गया,
अन्तर्मन  में   अलौकिक   कम्पन   छेड़ गया।  
 
नन्हीं कोंपलें  फूटी  सम्पूर्ण हुये टहनियों  के स्वप्न, 
एकटक  निहार  रही   हूँ  लताओं   का आलिंगन। 

मन उन्माद से भरा देख रहा उषा के उद्भव की मधुरता
प्रेम  से  भीगी  ओस  की  बूंदों की स्निग्ध शीतलता। 

फ़स्लों के फूलों से धरा का हो रहा श्रृंगार, 
सृष्टि  गा रही है आत्मीयता  भरा मल्हार। 

मन  चाहता है क्षितिज को बाहों  में  भर  लूँ,
एक - एक   पल   तुम्हारे    नाम   कर  लूँ। 

नवल आभा से पुनः दमकने लगी हैं आशाएँ,
अंगड़ाई   लेने   लगीं  कामुक  सी अदाएँ। 

रंगों   से   सरोबारित   हुईं  मन  की  राहें,
सुरभि  फूलों  से  भर  गयीं वृक्षों  की बाहें।  
 
मुझे आनंदित  कर रहा है मधुर हवाओं  का स्पर्श,
अदृश्य    सा     तुम्हारी   वफ़ाओं  का  स्पर्श। 

तुम्हारे आने से खिल उठी है मेरी कल्पनाओं की चमेली,
यह नव ऋतु भी लगने लगी बचपन  की सखी  सहेली। 

जीवन को  श्रृंगारित  करने  आये  हो-- तुम, 
मेरे मौन को अनुवादित करने आये हो--तुम। 
- डॉ.जसप्रीत कौर फ़लक
11, सेक्टर-1ए, गुरु गियान विहार, डुगरी, लुधियाना
 

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