बसंती ऐहसास अजूबा - अनिरुद्ध कुमार
Feb 16, 2024, 21:00 IST
बासंती पुरवा झकझोरे,
यौवन चटके पोरे पोरे।
उन्मादित बाँहें फैलाये,
मादकता लहराये जोरे।
आनंदित आकाश अगोरे,
नव तन का आभास बटोरे।
हरी चुनरिया पीली सरसों,
सुरभित पावन पवन हिलोरे।
मन गागर से सागर छलके,
लाल वसन गोरा तन मटके।
लट नागिन लहरे बलखाये,
नील ओढ़नी मारे झटके।
मधुर तान में कोयल गाये,
मदमादित जीवन लहराये,
सुखदाई यह तानाबाना,
राग रंग तनमन किलकाये।
प्रकृती का यह रंग अजूबा,
जड़ चेतन सारा जग डूबा।
बहुयामी जीवन ललचायें,
बसंती ऐहसास अजूबा।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड