भाव कलश - रश्मि मृदुलिका
Sep 1, 2023, 20:56 IST

संसार क्या चाहता है परवाह नहीं,
कौन साथ है, कौन नहीं ,सोचा नहीं,
नयन -परिधि तक दिखाई दिया मुझे,
प्रतिबिंबित छवि मुझमें कहीं तुम तो नहीं?
विचलित हुआ क्यों मन फिर से?
स्थिर प्रेम होगा अस्थिर मन से कैसे?
भावों से रिक्त हुआ कब हृदय- कलश,
जीवन भर भरता रहा पागल अविकल,
अश्रु झील में तरंगित स्मृति किसके लिए?
कौन है ,किनारे बैठा सीने में आह लिए?
आंचल- छोर से बांधी है मैंने भेंट जैसे,
तुम आओ तो गांठ खोलें स्वप्निल भाव जैसे
काया से जुड़े प्रतिछाया की तरह तुम,
आत्मतत्व में बृह्मत्व की तरह तुम,
प्रेम, आराध्य बना पराकाष्ठा में जब,
तुम हो तुम, मै हूँ मैं, भेद - अभेद बना तब,
- रश्मि मृदुलिका, देहरादून , उत्तराखंड