भाव पल्लवन डोली भूमि गिरत दसकंधर - डा० नीलिमा मिश्रा

 
pic

utkarshexpress.com - दशहरा पर्व असत्य पर सत्य की जय, अधर्म पर धर्म की जय, अनाचार पर सदाचार और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है। दशहरा संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है दस बुराइयों को हराना, ये हैं-काम,क्रोध,लोभ,मोह ,मद ,मत्सर ,स्वार्थ ,अन्याय ,अमानवीयता और अहंकार
एक तरफ जहाँ दशरथ-नंदन राम सदाचार के साक्षात रूप हैं वहीं दशानन रावण अनाचार का प्रतिबिंब है। उसके दस सिर, दसों बुराइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं। रावण प्रतीक है ज्ञान और शक्ति के दुरुपयोग का, रावण प्रतीक है नारियों के प्रति कुदृष्टि और व्यभिचार का, रावण प्रतीक है कृतघ्नता का इन सब का वध परम आवश्यक था तभी तो राम का अवतार होता है।
रामचरितमानस के लंका कांड में गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम-रावण युद्ध का वर्णन करते हुए लिखा है कि राम के वाणों के प्रहार से रावण के सिर और भुजाएँ कटती तो थीं लेकिन तुरंत ही नई निकल आती थीं। रावण के भाई विभीषण ने राम को बताया कि रावण की नाभि में अमृत है जिस कारण वह अजेय और अमर है अत: नाभि पर वाण मारिए। इस परम रहस्य को जानकर रामचंद्र जी ने एक साथ 31 वाण चलाए—
खैंचि सरासन श्रवण लगि, छाड़े सर एक तीस।
रधुनायक सायक चले , मानहुँ काल  फणीस।।
“सायक एक नाभि सर सोषा,
अपर लगे भुज सिर करि रोषा।”
राम का एक वाण  रावण की नाभि में लगता है, जिससे रावण की नाभि का अमृत सूख जाता है। शेष वाणों से रावण के दस शीश और बीस भुजाएं कट जाती हैं। रावण गर्जना करता हुआ भूमि पर गिर जाता है।
डोली भूमि गिरत दसकंधर। छुभित सिंधु सरि दिग्गज भूधर।।
नाभि में भगवान श्रीराम का तीर लगते ही रावण का विशालकाय शरीर जब धरती पर गिरता है तो धरती डोल जाती है अर्थात ऐसा लगता है कि भूकंप आ गया हो साथ ही समुद्र,नदियाँ, दिशाएँ और पर्वत क्षुब्ध हो जाते हैं।
इसी के आगे गोस्वामी जी लिखते हैं
धरनि परेउ द्वौ खंड बढ़ाई।
चापि भालु मर्कट समुदाई ।।
रावण के शरीर के दो टुकड़े होते ही रावण जो कि अष्ट सिद्धियों से युक्त था उसने अपनी महिमा का विस्तार किया और अपने शरीर को  बढ़ा कर गिराया जिससे अनेकों बंदर और भालू दब कर मर गए। यह इस बात को दर्शाता है कि दुष्ट प्रवृत्ति के लोग भले ही नष्ट हो रहे हो लेकिन वह अंतिम क्षण में भी यही प्रयास करते हैं कि दूसरों को नुक़सान पहुँचाएँ। ऐसे पापी-राक्षसी प्रवृत्ति के लोगों के कारण ही जब सर्वत्र त्राहिमाम-त्राहिमाम का उद्घोष होने लगता है, पाप के कारण धरा का भार बढ़ जाता है तब ईश्वर एक नया अवतार लेते  हैं जो मानवता को नयी राह दिखाते हैं।सर्वत्र आनंद छा जाता है इसी आनंद-उल्लास को पर्व के रूप में मनाने की भारतीय परंपरा का प्रतीक विजयदशमी या दशहरा पर्व है। पूरे भारत वर्ष में यह त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है  - डा० नीलिमा मिश्रा, प्रयागराज , उत्तर प्रदेश

Share this story