मेरी कलम से - भूपेन्द्र राघव
Apr 19, 2023, 20:46 IST

चाह मुझको नहीं पीर-पारण बनूँ
मैं उदाहरण बनूँ या निवारण बनूँ
मेरे ईश्वर यही एक वर दे मुझे
आँसुओं का किसी के न कारण बनूँ
सपना तो सपना होता है, काश हक़ीक़त होता
मेरे मन-मरुथल में कोई, बीज प्रेम के बोता
बनकर अश्रु न टपके होते , मीठे सस्य विटप के
हर दिन पुष्प, बगीचे से तब, चुनता और संजोता
नई-नई उल्फत की कविता, नये-नये संवादों की
सूख गयी भावों की पोखर, नेहिल-अंतरनादों की
छोड़ पुराना प्रेम-वसन अब, प्रीति नई हो, रीति नई
हँसकर आह! निकालो अर्थी, राघव कसमों वादों की
- भूपेन्द्र राघव, खुर्जा , उत्तर प्रदेश