मेरी कलम से - भूपेन्द्र राघव

 
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चाह  मुझको   नहीं   पीर-पारण  बनूँ
मैं  उदाहरण  बनूँ  या   निवारण  बनूँ 
मेरे   ईश्वर  यही   एक  वर   दे   मुझे 
आँसुओं का  किसी के न कारण बनूँ 

सपना  तो  सपना  होता है, काश  हक़ीक़त होता 
मेरे  मन-मरुथल   में   कोई, बीज  प्रेम  के  बोता 
बनकर अश्रु न  टपके होते , मीठे  सस्य विटप के 
हर दिन पुष्प, बगीचे से तब, चुनता और  संजोता 

नई-नई  उल्फत  की  कविता,  नये-नये   संवादों  की 
सूख  गयी  भावों  की  पोखर,  नेहिल-अंतरनादों  की 
छोड़ पुराना प्रेम-वसन अब,  प्रीति नई  हो, रीति  नई 
हँसकर आह! निकालो अर्थी, राघव कसमों वादों  की 
- भूपेन्द्र राघव, खुर्जा , उत्तर प्रदेश
 

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