वीरेन्द्र कुमार सक्सेना की जयंती पर हुआ पुस्तक विमोचन, कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह

 
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Utkarshexpress.com बदायूँ (UP) दीप्ति सक्सेना - काव्यदीप हिंदी साहित्यिक संस्थान द्वारा स्व.वीरेंद्र कुमार सक्सेना जी की स्मृति में सम्मान समारोह, पुस्तक विमोचन कार्यक्रम एवं कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। संस्थान की  संस्थापिका दीप्ति सक्सेना के काव्य संग्रह 'दीप्ति-अंदर की रौशनी' के विमोचन के साथ ही अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र गरल, मुख्य अतिथि जेल अधीक्षक विनय कुमार ,विशिष्ट अतिथि कमल गुप्ता एवं कवि राजेश शर्मा रिठौरा द्वारा 35 कवियों का सम्मान हुआ।
इस आयोजन में हिस्सा लेने के लिए बदायूँ समेत उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से प्रसिद्ध कवि/ कवयित्रियों ने अपनी काव्य रसधारा बहाई। कार्यक्रम का संचालन बदायूँ के सुनील शर्मा 'समर्थ' ने किया।
कवयित्री और काव्यदीप की संस्थापिका दीप्ति सक्सेना ने कहा -
"थका सूर्य भी चढ़ते-चढ़ते,उठो! नीम की छाँव चलो।
घड़ी- घड़ी अब जीना दूभर, लौट शहर तुम गाँव चलो"।
अध्यक्षीय काव्यपाठ करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र गरल ने पढ़ा -
"पानी अपनी सतह बदलता रहता है।
मंज़र अपनी वजह बदलता रहता है।
कोई धूप नहीं टिकती है पत्तों पर
सूरज अपनी जगह बदलता रहता है"।।
बदायूँ के डॉ अरविंद धवल ने पढ़ा -
"माँ के तो आँसू उसका दुख दर्द बयाँ कर देते हैं,
बाप की चुप्पी और हँसी का बोलो कब अनुवाद हुआ"।
बिल्सी के क़ासिम खैरवी ने कहा -
"मां बड़े शौक़ से नुक़सान में आ जाती है,
कमरा दे कर तुझे दालान में आ जाती है"।
पीलीभीत से आये हास्य कवि उमेश त्रिगुणायत अद्भुत ने कहा -
"सिर की छत रोज़ी रोटी का साधन हिल मिल बेच दिया।
अरमानों के क़ातिल ने अरमाँ का तिल तिल बेच दिया"।
हाथरस से आए संजीव हाथरसी ने पढ़ा -
"ममता की वो  मुरत है, सबसे खूबसूरत है।।
वो ही दिल में रहनी  है,हाँ वो मेरी पत्नी है"।
निशा सक्सेना ने कहा -
"माता से जीवन मिलता पिता बनता आधार ।
माता घर का सुख है तो पिता जग संसार"।
उझानी से पधारीं अंजली श्रीवास्तव ने कहा -
"तुम्हारे बिन यहाँ हम तो गुज़ारा कर न पायेंगे,
बसे हो दिल में तुम ऐसे किनारा कर न  पायेंगे।"
शाहजहांपुर से पधारे डॉ प्रदीप वैरागी ने पढ़ा -
"सूना-सूना है घर आंगन,तुम्हें पुकारे ये मन पावन।
रंभाती रहती है गैया,राह देखती कबसे मैया।"
बदायूँ के शैलेन्द्र मिश्र देव ने पढ़ा -
"टुकड़ों  पर  ईमान  गंवाने  वालों से।
बच कर रहना दाम कमाने वालों से"।
रिठौरा बरेली से पधारे कवि राजेश शर्मा ने कहा -
"यूँ ही रोने दे मुझे या तो हँसाने आ जा।
मेरे महबूब खफ़ा हूँ तू मनाने आ जा"।
उस्ताद शायर अहमद अमजदी ने फरमाय-
"अमीरे शहर करते हैं नुमाइश अपनी दौलत की
यह मंज़र देखता हूँ मै जहाँ भी दान होता है"
बिल्सी से आए ओजस्वी जौहरी ने पढ़ा-
"सोने का मृग है ये जगत पल पल भ्रमित रहें,
अपनों  को देख दर -बदर हर क्षण व्यथित रहें"।
बदायूँ के अचिन मासूम ने सुनाया -
"कभी गर्दिश में भी उसका सितारा जा नहीं सकता।
दुआ दे माँ तो फिर रब से भी टारा जा नहीं सकता"।
फिरोजाबाद से पधारे कुलदीप भारद्वाज ने कहा -
"जरा वक्त बदलने दो सितारे बदल जायेंगे,
नजर बदलने दो नज़ारे बदल जायेंगे।"
बरेली से पधारे अभिषेक अग्निहोत्री ने पढ़ा -
"करूं मैं भी चरण वंदन तो मैं सबसे चहेता हूं,
हुनर से गर धनुष तोड़ूं ,तो सब फरसा निकालेंगे"।
साहिल बदायूँनी ने पढ़ा कि -
"ये साहिल जो दरिया सँभाले हुए हैं
ये दरिया समंदर के पाले हुए हैं।"
मुरादाबाद से आए इंजीनियर फ़रीद आलम कादरी ने पढ़ा -
"बशर के भेस में शैताँ नज़र आए कई लेकिन,
बशर के भेस में इंसाँ नज़र आना ज़रूरी है"।
बदायूँ के अमन मयंक शर्मा ने पढ़ा -
"चटक धूप सी जिंदगी,नही दूर तक छाव।
बिना पिता जी आपके,जलते मेरे पाँव"।
बदायूँ के शमसुद्दीन शम्स ने फरमाया -
"कुछ भी नहीं बिगाड़ सके उसका दोस्तों,
कांटो के बीच देखिए तन्हा गुलाब है"।
बदायूँ के ही राजवीर सिंह तरंग ने कहा -
"कर रहीं हैं श्रेष्ठता के काज़ प्यारी बेटियां।
बन रही हैं देश की आवाज़ प्यारी बेटियां"।
नईम बदायूँनी ने पढ़ा -
"पलट के आओ न आओ तुम्हारी मर्ज़ी है,
मगर पुकारने वाला तुम्हें पुकारेगा"।
मनोज सक्सेना "मनोज" ने फरमाया -
"बच्चे पिता के आँखों के अधूरे सपने होते हैं,
जिनके लिए वे हर समय तकलीफें सहते हैं"।
कवि श्रीपाल शर्मा इदरीशपूरी ने फरमाया -
अपने मन की पीड़ा को मैं किसको रोज सुनाऊँ
तुम बिन रोये मेरा मन ये किसको मैं बतलाऊँ।
मै गीत तुम्हारे गाऊँ पिताजी
कार्यक्रम में बदायूँ के गौरव सक्सेना सहित सभी कवि/कवयित्रियों/शायरों का स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्र देकर सम्मान किया गया।
कार्यक्रम में मंजू सक्सेना, सुरेंद्र मौर्य, ओमकुमारी, सुरेश बाबू शाक्य, राजबाला शाक्य,  आलोक शाक्य,ज्योति दीक्षित,अनिका आदि उपस्थित रहे।
- (दीप्ति सक्सेना "दीप" आयोजिका/संस्थापिकाकाव्यदीप हिंदी साहित्य संस्थान बदायूँ)

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