बाल कविता - डा० क्षमा कौशिक

 
pic

चुन्नू,  मुन्नू, मोनू, गौरी,
आओ मिलकर खेलें होली।
रंग भरी पिचकारी लाओ,
सबको रंग में खूब भिगाओ।
रंगों की भर लाओ झोली,
आओ मिलकर खेलें होली।

देखो कोई बच न पाए,
कोई सूखा रह न जाए।
ऐसा रंग दो तुम रंगो से,
घर वाले पहचान न पाए।
शोर करे हुड़दंगी टोली,
घर घर जाकर खेलें होली।

भिन्न-भिन्न पकवान बने हैं,
रंगों के अंबार लगे है।
खेलो, खाओ,रंग लगाओ,
और प्रेम से कंठ लगाओ।।
छोरा हो या होवे छोरी, 
आओ मिलकर खेलें होली।।

रंग में भंग, न देना गाली, 
फाग सुनाना दे दे ताली।
जली होलिका तुम ये जानो,
सच की जीत सदा ये मानो।
चलो जलाएं दंभ की होली,
आओ मिलकर खेलें होली।।

दंभी चाहे जो भी कर ले,
चाहे कितनी डींगे भर ले,
शरण प्रभु की जो भी आया,
बाल न बांका जग कर पाया।
रंग में भंग न जोरा -जोरी ,
आओ मिलकर खेलें होली।।
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड
 

Share this story