चिंता - सुनील गुप्ता
चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए
वैध बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए !
कहां तक दवा लगाए, कछु समझ ही ना आए.......,
नीम हकीम के फेर में, ज़िन्दगी बर्बाद होती जाए !!1!!
चिंता चिता समझिए, मौत शनै: शनै: चली आए
आप ही बनें अपने शत्रु, फ़िर किसके दोष गिनाएं !
फ़िर किसके दोष गिनाएं,जब बुलाए लें हैं आफ़त.,
काट रहे हैं वही पेड़,जिसकी डाली पे पैर जमाए!!2!!
ज़माने का क्या कुसूर, जब नेक सलाह ही नहीं मानें
अपनी-अपनी ढपली बजाते, राग अपनी ही यहां गाएं !
राग अपनी ही यहां गाएं ,फ़िर कौन किसकी है सुनें..,
अपनी सोच बदलें नहीं,अपनी ही बात मनवाएं !!3!!
प्यास लगे तो खोदें कुआँ, है जीवन की यही सच्चाई,
किसी से मिले नहीं,स्वार्थ सिद्धि में उम्र बिताई !
स्वार्थ सिद्धि में उम्र बिताई, परहित का नहीं सोचा.,
रैना बीती चली जाए,कभी ना किजी कोई भलाई !!4!!
भाव ऊँचे देखकर, समझें चीज है बड़ी ही चोखी
सस्ती कोने में नीचे पड़ी , वही ठोकर ख़ूब है खाए !
वही ठोकर ख़ूब है खाए, सुनें सबकी खरी खोटी..,
अंत समय में वही चीज, बिगड़े काम सभी बनाए !!5!!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान