आना तुम - दीप्ती शुक्ला
May 2, 2024, 22:02 IST
![poic](https://utkarshexpress.com/static/c1e/client/84522/uploaded/1a2f761fbc004b005819000a695ad2f6.jpg)
जब तपते
नभ पर
पंछी करुण
कृंदन मचाये।
जब दरकती
धरा पर कोपल
एक भी.
उग ना पाये।
जब नयन पथराय
अश्रु एक ना बहाय।
जब मन मयूरा
हो बेकल चुप
रह जाय।
जब भागीरथी सा
ना कोई आकर
गंगा बहाये ।
जब नीर नयन भर आये
मन पपीहा प्यासा
कूक लगाय।
स्वाति नक्षत्र के
रोशन पल मे
बन घनश्याम
आना तुम ।
- दीप्ती शुक्ला, दिल्ली