पूरा हो जाये - शशि पाण्डेय

 
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कभी आओ तो साँध्य, 
फ़िर मेरी शाम खिल जाये, 
भोर की लाली यूँ ही, 
साँझ की लाली से मिल जाये।

एक ख़याल जो तुमसे, 
सुबह था बिछड़ गया, 
तुम्हारे अहसासों के साथ, 
बातो में तेरी घुल पूरा हो जाये।

चढ़ी चाय चूल्हे पर, 
अकेला प्याला इंतज़ार में, 
दूसरे प्याले का जो मिले साथ, 
चाय की फ़िर महफिल लग जाये।

पेपरों के उड़ते पन्ने, 
जो पढ़े थे तुमने सुबह, 
चाय संग उसकी खबरें, 
सुनाओ तो मुझमें ढंग आ जाये।

तेरी यादों से बोझिल दिन, 
थोड़ा कर -कर सरकाया, 
फ़िर हों न बिछ्डे लम्हे, 
आओ न मिल कोई गीत गुनगुनाये॥
- शशि पाण्डेय,  दिल्ली
 

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