उलझन (चौपाई छंद) - मधु शुक्ला
Nov 6, 2023, 16:32 IST

उलझन का डेरा हर मन में।
चैन नहीं है अब जीवन में।।
बदली सबकी कथनी करनी।
पड़ती मन को कीमत भरनी।।
मुश्किल है अब यह तय करना।
प्यास बुझा पायेगा झरना।।
नजर फेरते सभी समय पर।
नहीं आसरा दे अपना घर।।
सही गलत क्या समझ न आये।
हर रिश्ता मन को उलझाये।।
उम्मीदों का बढ़ा बसेरा।
अब डाले सहयोग न डेरा।।
उलझन से तब मुक्ति मिलेगी।
प्रेम कली जब स्वतः खिलेगी।।
अपनेपन को मान मिलेगा।
तब उलझन का विष न रहेगा।।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश