दोहा छंद  - मधु शुक्ला 

 
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कौन प्रतापी आप सा, ज्ञानी अंजनि लाल।
सुनें आपकी राम जी, रहते भक्त निहाल।।

हाथ जोड़ मस्तक झुका, करूँ विनय हनुमान।
नमन ग्रहण कर के करें, शुभ आशीष प्रदान।।

लिखे लेखनी सत्य ही, चाहे मिले न मान।
पर हितकारी भावना, की रख पाऊँ आन।।

घृणा द्वेष के तरु सभी, मैं कर पाऊँ नष्ट।
देने का वरदान यह, आप कीजिए कष्ट।।

जीव जगत  संतोष  से, रहे  प्रेम  के साथ।
दया दृष्टि की छाँव यदि, आप रखेंगे नाथ।। 
---  मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश 
 

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