दीप - डा० क्षमा कौशिक
Nov 12, 2023, 23:27 IST
रौशन होता दीप स्वयं का
नेह लुटाकर,
जग रौशन करता है निज
सर्वस्व मिटाकर।
इस दीवाली मैं भी एक
दीपक बन जाऊं,
छोटा सा बन दीप
कहीं कुछ तिमिर हटाऊँ।
भले नहीं चंदा- सूरज,
जुगनू बन जाऊं,
मुट्ठी में हो कैद
किसी मन को हर्षाऊं।
भले नहीं लड़ पाऊं
सारे अंधकार से,
बन आशा की किरण
तिमिर नैराश्य मिटाऊं।
इस दीवाली मैं भी
एक दीपक बन जाऊं,
कही किसी वीथी
चौबारे को दमकाऊं।
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून