दीपक - डा० क्षमा कौशिक

 
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लड़ा जब भी अंधेरे से 
कोई दीपक जला बाति। 
हुई रौशन अमावस की 
गहन काली महाराति। 
है जलना काम दीपक का 
वो मन का हो या माटी का.
भले नन्हा कोई दीपक 
हृदय में तुम जला रखना।
<> किरण <>
धुंध छाई थी दिशाओं में सघन 
कोहरा थमा,
इक किरण सूरज की चमकी 
जग उजाला हो गया।
पंछियों के झुंड चहके गगन 
पुलकित हो गया,
मंदिरों में शंख गूंजे 
नव सवेरा हो गया।
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड 

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