लोकतंत्र - मीनू कौशिक
Jan 28, 2024, 22:55 IST
उपहार लोकतंत्र का, कुर्बानियों से है मिला,
ये चमन स्वतंत्रता का, आँधियों में है खिला ।
खून की महक ,रची-बसी है रज में देश की
बलिदानियों ने झूमके,धरा को जो दिया पिला।
मतभेद लोकतंत्र की, पहचान खास है मगर,
बाँट दे जो मन कभी, चलना नहीं ऐसी डगर।
हिंद देश के निवासी, सभी जन एक हैं,
आओ मिलके आज दें, दुश्मनों को ये खबर।
हम समय के भाल पर लिख दें चलो मिलकर कहानी,
नफ़रतों की नागफनियों, को न देंगे खाद - पानी।
इस बगीचे को चलो, मिलकर सँवारे और संभाले,
रजनीगंधा प्रेम की, महके अमन की रात रानी।
- मीनू कौशिक 'तेजस्विनी', दिल्ली