देश सेवा धर्म कर - अनिरुद्ध कुमार

 
pic

मातृभूमि के रक्षक, अग्नि बीर हो मुखर, 
जिंदगी हीं है समर,  जाँ लुटादे देश पर।

आ गया सुअवसर, माँ का कर्ज अदा कर,
बढ़े चल़ो हो प्रखर, बीरता को आज वर। 

ध्यान रहे लक्ष्य पर, टूट बन के कहर,
बैरियों से युद्ध कर, दुश्मनों का काट सर।

छेड़ रण, टूट पड़, आगे बढ़ वार कर,
युद्ध तेरा स्वयंवर, बीरता का रंग भर।

बीर हो गंभीर चल, संकट में हो मुखर,
पाँव बढ़ा तुंग पर, देश सेवा धर्म कर।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड
 

Share this story