मुस्किल इहाँ गुजारा - अनिरुद्ध कुमार

 
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जिनगी बनल तमाशा, भगवान हीं सहारा,
होला सदा हताशा, लागे नशीब कारा।

बेचैन जिंदगानी, मझधार ना किनारा,
जीयल जबूर लागे, चारों तरफ अन्हारा।

भटकत रहीं हमेशा, गरदिश लगे सितारा,
आशा कबो निराशा, चाहीं सदा उबारा।

बइठल सदा निहारी, उम्मीद ना इशारा,
सोंची कहाँ पुकारीं, हतना बड़ा पसारा।

जीवन पहाड़ लागे, गमगीन बा नजारा,
तड़पे हिया हमेशा, बेजान देख सारा।

लागे बहार रूसल, सूना पड़ल दियारा,
धड़कत रहे करेजा, डगमग करे शिकारा।

अंजान ना जमाना, लौटल कठिन दुबारा,
अंजाम मान लीहल, कइसे करीं गँवारा।

दौड़े चलीं जमीं पर, ईमान आज खारा,
भगवान चूप काहे, लागे रहीं नकारा।

डूबल हमार नौका, आके जहाँ किनारा
हम सोंचते रहेनी, मुस्किल इहाँ गुजारा।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड
 

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