दीपों का त्यौहार दीपावली - अशोक यादव

 
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दीपों का त्यौहार, जीवन का सिंगार, आयी दिवाली।
गाँवों, नगरों के घरों में, चारों तरफ छाई है खुशहाली।।

अत्याचारी रावण को मार कर, लौटे जब राजा राम।
अयोध्या वासी प्रसन्न हुए, देख कर परम सुख धाम।।

बुराई पर अच्छाई और अँधकार पर प्रकाश की जय।
अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय।।

घी के दीपक जल उठे, बजने लगे ढोल और नगाड़े।
गूँजे जय श्री राम के नारे, फूटने लगे धड़ाधड़ पटाखे।।

आसमान में लहराने लगे, ज्ञान, सेवा का भगवा ध्वज।
भरत दौड़ रहे थे खुले पाँव, राजीव से मिलने को उद्यत।।

माताएँ आँचल फैला रही, सिर में छाया करने उत्सुक।
प्रजा आँखों में खुशी आँसू, ईश्वर को देख हुए भावुक।।

सजादो पूरे भारत को, दशरथनंदन रामराज ला रहे हैं।
झूमो रे! नाचो रे! गाओ रे! मेरे प्रभु श्रीराम आ रहे हैं।।
- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़
 

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