दियरी बाती घर-घर बारीं - अनिरुद्ध कुमार

 
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अब प्राण प्रतिष्ठा के बारी,
सजधज ठाढ़े मय नरनारी।
सब राम लला के ध्यान धरें,
ले अक्षत चंदन भर थारी।

अयोध्या नगरी अब राममय,
पलपल जनजन पर बा भारी।
मन आकुल व्याकुल राम रटे,
जन, साधु-संत या पटवारी।

श्री राम लला,जय राम लला, 
जग झूम रहल का लयदारी।
तनमन बासंती रंग सजल,
मदमातल झूमें जन सारी।

भारत के कोना कोना से,
प्रभु सेवक ठाढ़े संस्कारी।
ले धर्म धजा लहरावे जग,
मन गदगद सुंदर तइयारी।

अंबर धरती भइल राममय,
पावन मनहर साझेदारी। 
भारत के भाग्य जगाईं जा,
जनगण के बा हिस्सेदारी।

जयराम कहीं श्रीराम कहीं,
इहे सुअवसर जीवन तारीं।
आँगन बाहर नव दीप सजा,
दियरी बाती घरघर बारीं। 
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड
 

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