दोहे - कविता बिष्ट

 
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अमर असर है आपका, सुमन रहे है झूल,
सहज सहज कर बाग को, सरस सृष्टि है मूल।

नवल कुमुद से साजना, पवन बहे है रात,
चमन चमन है शोभते, चमक रहा मृदु गात।

अधर- अधर मुस्कान है, बहक रही है नार,
सुमन महक मन भावना,तीर हृदय के पार।

सृजन शब्द के सार से, हुआ हृदय है बाग,
भवर सुमन के पास है, सजल मधुर सा राग।

अधर- अधर मुस्कान है, बहक रही है नार,
सुमन महक मन भावना,तीर हृदय के पार।

सुमन खिलें हैं बाग में, शज़र खड़े चहुँ ओर,
मंद-मंद मुस्कान से, सरस पवन का जोर।
~कविता बिष्ट 'नेह', देहरादून, उत्तराखंड
 

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